“गरीबों के पास अपना कुछ खोने के लिए जमीर और इज्जत ही होता है। वह भी कोई छीन ले उसे कितना दुख होगा।”
एक मामला ऐसा हीं मध्य प्रदेश के जिलाधिकारी कार्यालय में देखने को मिला। कलेक्टर साहब एक गरीब ड्राइवर को हिट एंड रन के मामले ड्राइवरों द्वारा कर रहे हड़ताल पर दिशा निर्देश दे रहे थे, उनकी आवाज में सालिनता नहीं था ।ड्राइवर ने कहा आप अच्छे से बात करें ।साहब ठहरे “जिले का मालिक” बुरा लग गया ।उन्होंने अपने ब्रिटिश मानसिकता वहीं निकालते हुए कह दिया- तुम्हारी क्या औकात है? क्या कर लोगे तुम?ड्राइवर को अपनी इज्जत प्यारी थी। उसने पलटकर का कहा” यही लड़ाई है कि हमारी कोई औकात नहीं है” “माफी चाहता हूं बाउजी “ ।
यह लड़ाई सच में आजाद भारत में पिछले 76 सालों से जा रही है।भारत सरकार का कोई विभाग नहीं जहां ऐसी मानसिकता वाले नहीं दिखाई देते हों। इन्हें लगता है कुर्सी हमें हुकूमत करने के लिए मिला है।बेचारे पढ़े लिखे हैं, भूल जाते हैं, यह पद जनता की सेवा के लिए है ,जो सारी सुख सुविधा और गरिमा दिया गया है। यही वजह है कि गांव के लोग इन्हें अपनी भाषा में पढ़े-लिखे गधे बुलाते हैं।
कामगार वर्ग को ये बुलाना गलत भी नहीं है। क्योंकि हर काम की उतना हीं इज्ज्त है ,जितना भारत के राष्ट्रपति के काम की।वैसे कलक्टर साहब का प्रतिनिधि प्रत्येक विभाग में बैठा है। कुछ कर्मचारी वर्ग भी ऐसे ही होते हैं ,खास करके “क्लर्क वर्ग “पता नहीं इनको अलग तरह के दर्जे का अधिकार प्राप्त होता है। यह आपके हर काम लटकाते नजर आते हैं। बोलने का व्यवहार कागज पर छपे गांधी जी को देखकर बदल जाता है।सब कुछ समान हो जाता है, नहीं तो सीधे मुँह कभी बात भी नहीं करते ।
संविधान प्रत्येक नागरिक को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है ।कानून का कोई किताब कलेक्टर साहब इसे छीन (वापस) लेने का अधिकार नहीं देता।लेकिन यह लोग लगे हैं ,अपनी छोटी सोच दिखाने में ।
गलती इसमें जितना इनकी है ,उतना ही सरकार, समाज और लोगों की है। लोग लोकतंत्र में सिर्फ पांच साल में अपना “अधिकार” वोट देने के समय में याद करते हैं ,बाकी समय भूल जाते हैं ।यहां की जनता भूल जाती है सारी व्यवस्था उनके सेवा और कल्याण के लिए खड़ी की गई है। “वही राजा है” एक कलेक्टर उसका सेवक होता है।
जब तक लोग पदों पर बैठे लोगों को पूजते रहेंगे तब तक अपनी गरिमा खोते रहेंगे। सच में व्यक्ति ने लोकतंत्र का स्वाद भारत में अभी तक नहीं चखा ।ये मैं दावे के साथ कह सकता हूं ,क्योंकि लोगों को पदों पर बैठे व्यक्ति की गरिमा का ख्याल है, पर अपनी नहीं। जिस दिन पूरे भारत को प्रत्येक व्यक्ति यह एहसास होगा।समझ लीजिए इन्होंने लोकतंत्र का स्वाद लेना शुरू कर दिया है।
सरकारों की भी गलती है, इन्हें एक बार ट्रेनिंग देते हैं ।फिर छोड़ देते हैं “छुट्टा साँड़”(बैल) की तरह जो चाहे करो। इन्हें हर एक साल में जनता से रिपोर्ट कार्ड लेनी चाहिए, तब इनकी ऊपर की प्रमोशन होनी चाहिए। फिर क्या ,इनकी सूरत और सीरत देखते बनेगी। क्या औकात है तुम्हारे उनकी हलक में भी नहीं उतरेगी ?
यह विचार सच में थोड़ा अकल्पनीय है। लेकीन कब तक ऐसा चलता रहेगा” ड्राइवर ने कहा” यही तो लड़ाई है हमारी “सोचिये ड्राइवर जिस दिन जीत गया लोग सरकारी नौकरी करते हुए रौव झाड़ना छोड़ देंगे। कभी-कभी हमारे आसपास भी बेमतलब छोटा सा बीज भी पौधा हो जाता है “तब हम सभी का ध्यान जाता है ।देखते हैं कब बदलाव का हवा बहेगी ।
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