पत्नी के लिए पति भी करें कोई व्रत ....सत्यदेव

हम पुरुष के रूप होस संभालते हैं ,तभी अपने घरों में देखने लगते हैं ,माँ हमारे लिए, पिता जी के लिए बहन भी हमारे लिए ,अपने पति के लिए व्रत कर रही है।परंतु पिता जी कोई व्रत माँ के लिए नहीं करते, बेशक मां को बहुत प्यार करते हैं। उनके सुख-दुख में साथ देते हैं। हम भी बच्चे से बड़े हो जाते हैं ,कभी भी अपने माँ,बहन, पत्नी के लिए कोई व्रत नहीं करते हैं।

व्रत हम करते हैं ,हिंदू धर्म के अनुसार शक्ति के रूप में पूजते हैं ,वहां भी हमारा उद्देश्य देवी शक्ति से कुछ मांगना ही है। एक स्त्री अपना संपूर्ण जीवन पुरुष को जीवनदान से लेकर हर समय उसे हीं बनाने में समर्पित कर देती है ।पुरुष भी ऐसा नहीं है कि स्त्री के लिए कुछ नहीं करते ,परंतु त्याग की भावना पुरुषों में कम होती है।

स्त्री के इतने व्रत जो पुरुष के खुशहाल जीवन ,उनकी समृद्धि के लिए होता है ।परंतु पुरुष त्याग और समर्पण इतने कंजूस होते हैं कि स्त्री के इतने सारे व्रत के लिए शुक्रिया अदा भी नहीं करते ।अगर करते भी हैं तो बहुत कम हीं देखने को मिलता है। जब भी इस बात का विचार समाज में छिड़ता है कि पुरुषों को भी स्त्री के लिए व्रत करनी चाहिए, एक मत होना अभी तक संभव नहीं हुआ है।

मौजूदा समय में युवाओं में यह भावना होनी हीं चाहिए कि व्रत हम भी उनके लिए करें। ये कब करें, निर्धारित करना भी आसान है ।जिस दिन स्त्री हमारे लिए  व्रत करती हैं ,उसके अगले दिन हम उनके लिए करें । ये छोटी- सी आध्यात्मिक समानता विचार की शुरुआत  स्त्री सामाजिक समानता को और असान बना सकता है। 

     ये पक्ष और विपक्ष में बिल्कुल हीं नहीं पड़े कि हमारे धर्मग्रंथो नहीं लिखा हुआ है।क्योंकि जो धर्मग्रंथों में जो अधिकार नहीं मिला ,वो संविधान ने दिया है । इसलिए ये तो सम्पर्ण देने वाली बात है ,जो एक पुरूष दे सकता है। यहां पर संविधान और धर्मग्रंथों की आवश्यकता नहीं लगती ।ये आध्यात्मिक समानता नई युवा सोच पैदा करता है।

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सत्यदेव कुमार

Journalism student iimc delhi ,thinker ,love with poetry and political science,master in poltical science ,delhi university