मानवता के साथ युद्ध ?? सत्यदेव

इजराइल और हमास के बीच युद्व के पन्द्रह दिन हो चुके हैं। ये युद्ध 56 वर्षों से चला आ रहा है। सयुंक्त राष्ट्र और अंग्रेजों के समर्थन से 1948 में इजराइल का जन्म हुआ। इधर फिलिस्तीन के सहयोग से हमास का 1987 में उदय हुआ। ये जमीन ,जाति ,धर्म की लड़ाई, मानवता से परे जा चुकी है।

इजराइल और फिलिस्तीन में अब तक सात जंग लड़ी जा चुकी है। इन युद्धों में मानवता का कितना गला घोंटा गया है ,मौजूदा समय में इजराइल और हमास के बीच देखने को मिल रहा है। एक ओर इजराइल द्वारा अस्पताल पर हमले हो रहे हैं ,जिसमें ज्यादात्तर महिलाएं और बच्चे प्रभावित हैं। इजराइल ने बिजली ,पानी फूड और मेडिसीन के सप्लाई बंद कर दिया। 

वहीं हमास भी मानवता की मर्यादा लांघ रहा है।ये कहते हैं कि वो अल्लाह में यकीन करते हैं ।परंतु उन्हें किसी भगवान में यकीन नहीं है ,वे वहशी हैं, उन्हें लगता है जिंदगी खेल है। पालने से बच्चे उठा ले गए ,बेड पर सो रहे बुजुर्गों को गोली मारी, पार्टी कर रहे लोगों को ऐसे मारा जैसे कंप्यूटर गेम्स में मारते हैं। इस तरह का मानवता के साथ युद्ध पूरे दुनिया को देखना चाहिए।

 युद्ध का घोषणा करने वाला इजराइल अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून जिनेवा कन्वेंशन 1951 में अपना चुका है। यह कन्वेंशन बड़े पैमाने पर युद्धकालीन कैदियों, नागरिकों ,और सैन्य कर्मियों के बुनियादी अधिकरों को परिभाषित करता है ,घायलों और बीमारों के लिए सुरक्षा स्थापित करता है और युद्ध क्षेत्र में उसके आसपास नागरिकों के लिए सुरक्षा प्रदान करता है।

लेकिन इजराइल द्वारा वार क्राइम हो रहा है।न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार इसके हमले से प्रभावित क्षेत्र गाजा में 5 हजार गर्वभती महिलाओं पर खतरा है।गल्फ न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक जयादातर लोग वे-घर  हो गए हैं ,वो गलियों में रात गुजार रहे हैं। वाटर सप्लाई बंद है।लोगों के पास न तो पैसा है और न ही बेकरीज और दुकानों में सामान ही हैं।

 हमास भी मानवता को छत -विक्षत कर रहा है ।हमास ने दो सौ इजराइलियों को बंधक बनाया है ,लेकिन सैकड़ों हमले के बाद लापता है। कई लोग बच्चे ,माँ-बाप ,पत्नी ,वहन की फ़ोटो लेकर भटक रहे हैं। कभी अस्पताल में जाते हैं कभी मॉर्चरी या पुलिस के पास। सोशल मीडिया पर तस्वीरें डालकर खोज खबर पूछ रहे हैं।

प्रत्येक युद्ध की तरह सयुंक्त राष्ट्र आक्रमण को रोकने का आह्वान किया ,इसका प्रभाव कितना बचा है ,मौजूद समय में ये जग जाहिर है । प्रत्येक देश अपने विदेश नीति के अनुसार निंदा कर कर रहे हैं ,क्योंकि मानवता के युद्ध में अंजाम जो भी हो लेकिन इस जंग में बहुत सारी जिंदगीयाँ तबाह होना तय है।

मानव के विकास यात्रा में युद्ध करने वाले पर सवाल उठता है ,जब जमीन किसी का था हीं नहीं ,सभी आदिमानव थे ,न कोई धर्म था ,न देश था ,तो ये डार्विन का सिद्धांत युद्ध का सिद्धांत में कैसे पड़ गए ।ये विचार मानवता के पुजारी को जरूर करना चाहिए।

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सत्यदेव कुमार

Journalism student iimc delhi ,thinker ,love with poetry and political science,master in poltical science ,delhi university