हम औरतों को बदन में कैसा-कैसा टाइम पास होता है “साला” । पहले ये निकलता है (चेस्ट ) फिर धीरे-धीरे बड़ा हो जाता है, नीचे से खून। लोग ऐसे ऊपर ,आगे पीछे -नीचे घूमता रहता है, हर टाइम ऐसे आँख गड़ा के रखता है, अभी फटेगा कपड़ा ,अभी दिखेगा जन्नत ।
यह डायलॉग मुख्य नायिका द्वारा “मस्ती में रहने का फिल्म “का है।पुरुष समाज को चाटा मारने के लिए अच्छा है । सामज में पुरुषों की यही सच्चाई है। ये आसानी से देख सकते हैं। पुरुष समाज बड़े सावधानी से महिलाओं को नौकरी देता है, वहां भी कई कोचिंग, होटल रेस्टोरेंट में अंग प्रदर्शन हीं होता है ।
नारीवाद की अवधारणा में समानता को नया चोला पुरुष ने डाल दिया है ।पर इसके विचार आज भी वही शोषण प्रवृत्ति वाला ही है।महिलाओं को भी इस बात का एहसास होता है कि उन्हें किस काम के लिए रखा गया, ऐसे काम के पैसे भी मिलेंगे ।
परंतु लाचार और बेबस औरतें कर लेती हैं ।वे मुस्कुरा कर कहती है, बताइए मैं आपकी क्या सहायता कर सकती हूं ।यहां भी अपने आप को मर्द कहने वाले नंगी सोच से ही देखते हैं। लोग इसे गंदी प्रवृत्ति को खूब मजे में चर्चा भी करते हैं। इन्हें लगता है यह बातें जिंदगी का हिस्सा है।
ईमानदारी से देखे तो पुरुष में कोई भी इससे अछूता नहीं है।इसके लिए कानून भी है ,अगर आप कोई महिला को 14 सेकंड से ज्यादा घूरते हैं तो ये अपराध की श्रेणी में आता है ।अब तक भारतीय दंड संहिता की धारा 294 धारा 509 के तहत या अपराध माना जाता था। लेकिन पुरुष समाज बिल्कुल भी नहीं डरता उनकी नीचता सदियों से बनी हुई है। भगवान जाने कब सुधरेंगे? यह सवाल प्रत्येक मर्द को अपने आप से भी करना चाहिए ?उनकी मानसिकता का विकास कब होगा?
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