गुस्सा क्यों?? सत्यदेव

वजह कोई भी हो जिंदगी में गुस्सा निदान नहीं है।जिंदगी में उथल-पुथल होना स्वाभाविक है।यह आपके अंदर चिढ़(नारजगी) पैदा करता है,और ये गुस्सा में व्यक्त हो जाता है।जो आपके अंदर के कुछ पोषक तत्व की तरह कमी को बताता है।

वहीं पर संभल जायें ,जब यह कमजोर कर रहा हो। हां आस -पास के संगत ,आपके अंदर की कमियां ,गुस्सा बन जाता है ।परंतु यह गुस्सा से परेशानियों में और परेशानी खड़ा हो जाती है। इसका उदाहरण भी है जो आप अच्छे से जानते हैं ,जो रिश्ते सोना- बेबी से शुरू होता है वो रोना और बिछड़ना तक पहुंच जाता है ।जो हेलो, हाय से शुरू होता है वह चल( वे )से खत्म हो जाता है।

इसलिए अपने अंदर चल रहे द्वंद्व को गुस्सा में व्यक्त होने देना या आपके हवा में प्रकट हो जाना ये अच्छी बात नहीं है ।इसे रोक पाना इतना कठिन भी नहीं है ,बस एक कोशिश होनी चाहिए ।इसका सीधा और सरल उपाय जहां आप जो काम कर रहे हैं, वहां वही काम करें।जिसके साथ हैं, सिर्फ उसी के साथ हों  ,समझे कि अंदर का द्वंद बाहर नहीं आनी चाहिए। उसे द्वंद का समाधान आप वहां से निकल कर कर लें।

इस धरती पर सबसे कमजोर व्यक्ति को गुस्सा हीं बनाती है।आप कह सकते हैं , इसे व्यक्त भी करना भी कभी-कभी जरूरी होता है। परंतु व्यक्त करते हुए शब्दों की सावधानी इतनी सरल हो कि सामने वाले लगे भी गुस्सा है ,और बने हुए रिश्ते खराब ना हो ।ये तरीके जिंदगी में सफल होनें में बहुत बड़ी चालाकी होती है।

हम अक्सर गुस्सा में ऐसे फैसले लेते हैं, जो कभी  जिंदगी सरल नहीं बनाती है।जब यह इतना खतरनाक है, तो करते क्यों है? ये प्रशन भी है , आपके  वजह जो है, पर आप संभल जाएं तो वजह भी वजह नहीं बन पाती। कोई होती है ,हां इसकी एक निदान आप कर सकते हैं।

इस गुस्से को छोड़ने का एक उपाय भी है,जिंदगी में सभी के साथ अच्छी विनम्रता से रहें ।बस अपनी दायरे में रहें ,किसी को इतना अनुमती न दें कि आप के गुस्सा का कारण बने, बस बात बन जायेगी। मुस्कुराकर जीएं अपने दायरे आपकी की अभिव्यक्ति है जो पहचान है।

उसमें बने रहें तो शायद आप अपने गुस्से का इलाज स्वयं कर सकते हैं ।साथ में विनम्रता और आपकी मुस्कुराहट आपको हमेशा एक अच्छा मार्ग दिखाती है।

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सत्यदेव कुमार

Journalism student iimc delhi ,thinker ,love with poetry and political science,master in poltical science ,delhi university