बचपन से जवानी तक सब कुछ ठीक ही लगता है। जब आप किशोरावस्था में होते हैं ,तो क्रांतिकारी और प्रेमी होते हैं। यह अवस्था गांव के लहजे में चढ़ती जवानी है। यानी ,क्रांतिकारी को बिगड़ा हुआ और प्रेमी को लफंगा कह देते हैं। सच कहें तो जीने का मजा तो यही चढ़ती जवानी हीं है।जिसमें आप सब कुछ बदल देना चाहते हैं।एक क्रांतिकारी की तरह। सब कुछ पाना चाहते हैं, एक प्रेमी की तरह।
किसी से सच्चा प्रेम तो केवल इस समय ही होता है, बाकी बाद का प्यार तो समझौते ही होते हैं। किसी पाने की ललक लड़का हो या लड़की दोनों की होती है। विज्ञान इसे शरीर के हार्मोन चेंज देकर दोष देती है। इस प्रेम को जो अति सुंदर है ,मनमोहक है, त्याग की भावना है।
यह प्रेम हर किसी का होता है जो कह देते हैं ,वह प्रेम कर लेते हैं।जो नहीं कहते हैं, वह एक तरफा ही रह जाते हैं । इस प्रेम की पहली चिट्ठी क्लास नोट्स के साथ शुरू होता था ।आजकल प्रचलन डिजिटल और टेक्निकल ज्यादा हो गया है।युवा प्रेमी धैर्यता की कमी भी है ,उन्हें सब कुछ मैगी,नूडल्स की तरह जल्दी चाहिए।बस बात थोड़ा यहीं बिगड़ जाती है। ये बात न बिगड़े युवा और अभिभावकों को देखना पड़ेगा ।ये उम्र किसी बात की चिंता नहीं है ।चाहे लड़की हो या लड़के हों। बस यही है जिंदगी है। दूसरी तरफ क्रांतिकारी का है या बागी कहें।
एक युवा अपने शर्ट के कॉलर हवा में रखते हैं। दुनिया उनके कदमों में होती है।जब चाहे जो चाहा किया। चाहे लड़ाई हो या बदमाशी मां-बाप के जूते और गालियां का कोई फिक्र नहीं होता, फर्क नहीं पड़ता ।क्योंकि हम ही राजा हैं। यह उन्हें पता होता है ।वैसे यह जिंदा व्यक्तित्व है बस जी रहे हैं, जीना नहीं पड़ रहा है।
किशोरावस्था ढलने लगता है।व्यक्ति जवान हो जाता है । उसे पहली बार चिंता होती है। जिंदगी में क्या करना है। फिर उसे करने के लिए पीछे भागते हैं। क्या करना है , इसमें इतना ज्ञानी हो जाते हैं ,फिर जो जीते रहा सब कुछ छूट जाता है।
उसे ज्ञान हो जाता है ,जीवन का कैसे चलेगा। जीवन जीने के लिए क्या उपाय करूंगा। फिर जो प्रेमी और क्रांतिकारी था, वह मर जाता है। उसमें सिर्फ एक जिंदगी की समझ आ चुकी होती है।बस हाड़ -माँस के शरीर को 25 साल से 100 साल तक ले जाने की कोशिश में रोज जिंदा रहने के लिए मरते रहता है। अंदर का वह प्रेमी और क्रांतिकारी की राख सिर्फ हंसते हैं ।इसी के राख से लिखा जाता है ,जवानी का इतिहास ।
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