स्त्री प्रेम का ठेका ? सत्यदेव

बहुत हद तक हम सभी देखते आए हैं ,पुरुष ही स्त्री के प्रति आकर्षित होते हैं।पुरुषों में स्त्री के प्रति प्रेम स्वाभाविक होता है ।यह स्त्री प्रेम सिर्फ एक ही सच्चा प्रेम है “मां का बेटे से बेटे से मां का” । बाकी सभी स्त्री प्रेम पुरुष और स्त्री को लेकर स्वार्थ में है।

आप प्रश्न कर सकते हैं, नहीं मैं अपनी प्रेमिका या पत्नी से बहुत प्रेम करता हूं। लेकिन यह प्रेम थोड़ा खोट तो होता है, हां कुछ विरले उदाहरण हैं -पति-पत्नी और प्रेम प्रेमिका का समाज में जो हमेशा मौजूद रहेंगे। अब किसका प्रेम सच्चा या खोटा है। आप खुद सोच सकते हैं।

        जैसे मैंने कहा स्त्री प्रेम पुरुषों में स्वाभाविक है, यह तथ्य और वैज्ञानिक रूप से भी सच है। आप सोच कर देखिए कितने बॉलीवुड गाने हैं ,जिनमें एक स्त्री पुरुष को आकर्षित कर रही है। अपवाद है कुछ- जिसमें दिलीप कुमार का एक गाना है “छोटी सी उम्र में लग गया रोग मैं मर जाऊंगी “।जो अभिनेत्री द्वारा पुरुष प्रेम का  इज़हार करने वाला गाना है।

लेकिन ज्यादातर गाने- “तुमसे अच्छा कौन है “जैसे -आशिक 2के गाने “हम तेरे बिन अब रह नहीं सकते” ।बहुत उदाहरण है ।हर जगह पुरुष स्त्री के प्रेम में पागल हो रहा है। एक फिल्म भी “तेरे तेरे नाम “जैसा नहीं है कि स्त्री किसी पुरुष के प्यार में पागल हो गई है। हां सलमान खान का ही एक फिल्म है- “क्योंकि “जिसमें  पहले सलमान को स्त्री प्रेम में पागल दिखाया गया , बाद में अभिनेत्रि(करीना) पागल हो जाती है।

मेरे कहने का मतलब यह पुरुष कब तक स्त्री प्रेम में पागल होते रहेंगे। यह स्त्री के दिल का फिक्र करने का ठेका पुरुषों ने ले रखा है। स्त्री का तो पुरुष प्रेम में सहायक बना दिया गया है ।प्रेम में भी मुख्य भूमिका पता नहीं कब शुरू होगा ?एक स्त्री पुरुष के लिए बहुत कुछ समर्पित करती है ।इसके लिए शब्द भी कम पड़ेंगे  लेकिन पुरुष स्त्री प्रेम पर अपना अधिकार बनाए है।

एक खास बात स्त्री प्रेम में ज्यादातर दिल पुरुषों के टूटते हैं। पता नहीं स्त्री का दिल प्लास्टिक और पुरुष का शीशे का है, जो टूटाता ही रहता है। प्रेम प्रसंग में स्त्री बहुत जल्द निकल जाएगी, पुरुष वही अटका रहता है। रोता रहता है “हमें छोड़ दी” शीशे का था दिल मेरा पत्थर का जमाना था जैसा चेहरा लिए घूमता रहता है।

भावनात्मक रूप से मजबूत स्त्री होती है। पुरुष भावनात्मक बस देखने के लिए है। यह पहली बार प्रेम में गिरते हैं, धोखा खाकर निकलना मुश्किल हो जाता है।दूसरी ओर लड़कियों इनसे पहले निकल जाती है। स्त्री प्रेम बहुत अजीब है, इससे बच पाना भी बहुत मुश्किल है।लड़की प्रेम में धोखा खाये तो भी शराब ,गांजा सेवन भी नहीं करती, पर पुरुष का नशा करने का एक बहाना भी हो जाता है।

स्त्री प्रेम में बदलाव कब होगा सबसे बड़ा प्रश्न है।आखिर कब  एक स्त्री पहले पुरुष को कहेगी मैं तुम्हें चाहती हूं। पहली बार लाल गुलाब का फूल पुरुष को कब एक स्त्री देगी । ये गाने का बोल कब बदलेगा जिसमें स्त्री द्वारा पुरुष की सुंदरता का भाव होगा, रैप होगा, तुम्हारे गाल ,होठ ,नैन डोले -सोले आदि ।

अभी इतना विकसित समाज बनने में समय लगेगा। जब लड़कियों के बीच किसी पुरुष प्रेम पाने के लिए आए दिन झगड़ा ,स्कूल कोचिंग में होंगे जैसे -आजकल लड़की के लिए पुरुष करते रहते हैं। फिल्म ये कब तक स्त्रियों का इज्जत लूटते हुए दिखाते रहेंगे ?पुरुषों का भी इज्जत लूटते दिखाना चाहिए और स्त्री को उसे बचाते हुए ,बदला लेते हुए।तब कुछ मजेदार सामानता अधिकार वाली बात होगी, हां यह अधिकार स्त्री को दिया जाना चाहिए।

“हास्यास्पद होगा” यह कहना संसद में बिल लाने की जरूरत पड़े तो लानी चाहिए ,आखिर कब तक स्त्री प्रेम करने को ठेका पुरुषों का होगा स्त्री का भी होना चाहिए।


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सत्यदेव कुमार

Journalism student iimc delhi ,thinker ,love with poetry and political science,master in poltical science ,delhi university